शाश्वत शुक्ल / बिलासपुर। कभी सोचा था कि अरपा नदी की सहायक नदियाँ भी होंगी ? लेकिन अब सड़कों पर उतरते ही आपको अरपा की शाखाएँ मिल जाएँगी। आप सोच रहे होंगे कि नगर निगम ने कोई नया जल संरक्षण प्रोजेक्ट शुरू कर दिया है, लेकिन नहीं, यह तो हमारे शहर की सड़कों की नियति है।

इस तस्वीर को देखिए। इसे देखकर लगता है कि बारिश होते ही सड़क का प्रमोशन हो गया और वह ‘सड़क’ से ‘झील’ बन गई। गड्ढे अब छोटे-मोटे तालाब नहीं रहे, बल्कि ‘सहायक नदियों’ का रूप ले चुके हैं। यह नदियाँ अब इतनी विशाल हो गई हैं कि स्कूटी और साइकिल सवार मछुआरों की तरह किनारे-किनारे चलते हैं। गड्ढों में पानी नहीं, बल्कि सरकार की उदासीनता और सिस्टम की नाकामी भरी पड़ी है।
नगर निगम को धन्यवाद दीजिए, जिसने यह सुनिश्चित किया कि सड़कें सिर्फ चलने के लिए नहीं, बल्कि तैरने के लिए भी बनाई जाएँ। यह विकास का नया मॉडल है, जहाँ सड़कें नहीं, बल्कि नाव चलेंगी। अब तो लगता है कि आने वाले दिनों में लोग अपने दस्तावेजों में ‘पता’ नहीं, बल्कि ‘नौपरिवहन मार्ग’ लिखेंगे।
जो लोग शिकायत करते हैं कि शहर में नदियाँ सूख रही हैं, वे इस तस्वीर को देख लें। सरकार ने आपकी समस्या हल कर दी है—अब अकेले अरपा नहीं, उसकी कई छोटी-छोटी ‘सहायक नदियाँ’ हर सड़क पर बह रही हैं। और हाँ, ध्यान रहे! कहीं आप अपनी बाइक लेकर इसमें उतर न जाएँ, क्योंकि यह सड़क कम और वाटर पार्क ज़्यादा लग रही है।
अगर आपकी भी गली में ऐसी ही सहायक नदियाँ बह रही हैं, तो चिंता मत करिए। यह सरकार के नए इको-फ्रेंडली प्रोजेक्ट का हिस्सा है। जहाँ गड्ढे, पानी और धूल मिलकर ‘आत्मनिर्भर सड़क योजना’ को साकार कर रहे हैं।
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