Suyash Mishra/ Film Review: आज के समय में जब एनिमेटेड फिल्में मुख्यतः पश्चिमी सौंदर्यशास्त्र और शैलियों पर आधारित होती जा रही हैं, यह भारतीय पौराणिक एनिमेशन फिल्म एक साहसी कदम है जो दर्शकों के समक्ष एक भव्य, आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखती है। यह डिज़्नी या पिक्सार की परिपक्वता की नकल नहीं करती, बल्कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी विशिष्ट कथा शैली को अपनाती है।
एनिमेशन की दृष्टि से, महावतार नरसिम्हा फिल्म भारतीय एनिमेशन सिनेमा की समकालीन गुणवत्ता की तुलना में एक प्रशंसनीय अनुभव देती है। पात्रों के मॉडल अच्छे से डिज़ाइन किए गए हैं, और अधिकतर दृश्यों में रेंडरिंग व स्मूद मूवमेंट की सराहना की जा सकती है। हालांकि, कुछ स्थानों पर स्थायित्व की कमी महसूस होती है—विशेष रूप से प्रह्लाद और असुर बालकों के ट्रांज़िशन में, जो दृश्य-दर-दृश्य असंगत प्रतीत होते हैं। कुछ बनावट (textures) और परिवेशों में आवश्यक परिष्कार की कमी है।
इसके बावजूद, फिल्म की कल्पनाशीलता और रचनात्मक दृष्टिकोण सराहनीय हैं। विशेष रूप से वराह और हिरण्याक्ष के बीच का ब्रह्मांडीय युद्ध एक ऐसा भव्य दृश्य प्रस्तुत करता है, जो भारतीय एनिमेशन में दुर्लभ है। यह दृश्य, जहाँ दो दिव्य शक्तियाँ ग्रहों के बीच टकरार करती हैं, और पृथ्वीवासियों की प्रतिक्रिया सामने आती है, एक सिनेमाई शिखर की अनुभूति देता है।
संवाद लेखन और डबिंग: सरल और कभी-कभार असमयोजित
हिंदी डब संस्करण में संवाद लेखन अपेक्षाकृत साधारण है। यद्यपि फिल्म का मुख्य लक्ष्य पारिवारिक दर्शक हैं, परन्तु भाषा की सहजता कई बार अत्यधिक सामान्य हो जाती है। प्रह्लाद जैसे बाल पात्र के संवाद, कुछ स्थानों पर अत्यधिक नाटकीय और परिपक्व प्रतीत होते हैं, जो कथा की विश्वसनीयता को प्रभावित करते हैं। संवाद और डबिंग निर्देशन यदि अधिक परिष्कृत होते, तो भावनात्मक गहराई बेहतर सामने आ सकती थी।
कथा और रफ्तार: जानी-पहचानी कहानी, लेकिन असरदार प्रस्तुति
हालाँकि फिल्म की पौराणिक कथा बहुपरिचित है, फिर भी यह दर्शकों को स्क्रीन से जोड़े रखने में सफल होती है — मुख्यतः अपने दृश्य प्रभाव और मुख्य पात्रों में भावनात्मक निवेश के कारण। फिर भी, पटकथा में गति की समस्या स्पष्ट है। कई दृश्य, जैसे गुरुकुल में बच्चों की बातचीत या कुछ अनावश्यक गीत, कथा प्रवाह में रुकावट उत्पन्न करते हैं और निरंतरता को बाधित करते हैं। यदि फिल्म की लंबाई 15–20 मिनट घटा दी जाती, तो यह अधिक प्रभावी और बाँधने वाली हो सकती थी।
ध्वनि डिज़ाइन: एक उल्लेखनीय उपलब्धि
ध्वनि की दृष्टि से फिल्म विशेष उल्लेख की पात्र है। पत्थरों के टकराने से लेकर कवच की गर्जना, देवासुरों की चीखें और यहाँ तक कि सूक्ष्म ध्वनियों की भी सटीकता अद्वितीय प्रतीत होती है। विशेष रूप से युद्ध और दिव्य प्रकट होते क्षणों में ध्वनि और दृश्य का समन्वय नाटकीय प्रभाव को और अधिक गहराई देता है।
पराकाष्ठा और एक्शन दृश्य: मिश्रित निष्पादन, परंतु शक्तिशाली क्षण
तीसरे भाग में फिल्म अपने सबसे प्रतीक्षित क्षण पर पहुँचती है—नरसिंह का प्रकट होना। उनका स्वर्णिम तेज, स्तंभ से प्रकट होते हुए, दर्शकों को एकत्र किए हुए उत्साह और प्रतीक्षा का चरम बिंदु बन जाता है। नरसिंह और हिरण्यकश्यप के मध्य का युद्ध दृष्टिगत रूप से भव्य है और अच्छे से लिखा गया है। हालांकि, इसकी दृश्य संरचना थोड़ी असंतुलित प्रतीत होती है—कुछ लड़ाई के दृश्य जल्दबाजी में किये गए लगते हैं या अतिव्यस्त विजुअल्स के कारण स्पष्टता आंशिक रूप से खो जाती है।
हिंसा से जुड़े दृश्य अपेक्षाकृत अधिक परिपक्व (PG-13 स्तर के) हैं, जैसे असुरों के अंगों का फाड़ना और रीढ़ की हड्डियों का चूर-चूर होना — जो आश्चर्यजनक होते हुए भी, आवश्यक प्रतीत होते हैं। यह प्रयोग भारतीय एनिमेशन सिनेमा के लिए ताजगी भरा पहलू है, जो प्रायः पारिवारिक दर्शकों तक सीमित रहता है।
निष्कर्ष: आधुनिक दृष्टिकोण से पौराणिकता की भव्य प्रस्तुति
कुल मिलाकर, यह फिल्म भारतीय पौराणिकताओं को एनिमेशन के माध्यम से समकालीन दर्शकों तक पहुँचाने का एक सशक्त प्रयास है। यद्यपि इसमें तकनीकी व कथा से जुड़ी कमियाँ विद्यमान हैं, फिर भी इसकी दृश्य कल्पनाशीलता, भावुकता और सांस्कृतिक प्रासंगिकता इतनी सशक्त है कि यह खासकर पौराणिकता प्रेमियों के लिए एक बार तो अवश्य देखे जाने योग्य बनती है।
अंतिम मूल्यांकन: 7.5/10
– एनीमेशन: 7/10 — कल्पनाशीलता की दृष्टि से मजबूत, लेकिन तकनीकी असंगतियों से ग्रस्त
– ध्वनि प्रभाव: 7/10 — समृद्ध और डूबने योग्य ऑडियो वातावरण
– साउंडट्रैक: 5.5/10 — कई बार कथा के लिए असम्बद्ध या अनावश्यक प्रतीत होता है
– कहानी: 7/10 — पात्रता में परिचित परंतु प्रभावशाली
एक आवश्यक फिल्म है उन दर्शकों के लिए जो भगवान की कथाओं से जुड़ाव रखते हैं और उनके पुन:प्रस्तुतीकरण को एक आधुनिक, भव्य दृष्टिकोण से देखना चाहते हैं। खासकर Gen Z के दर्शकों के लिए, जिन्होंने रामायण: द लिजेंड ऑफ प्रिंस राम और हनुमान जैसी फिल्मों के साथ बचपन बिताया है, यह फिल्म उनके लिए एक बार देखने योग्य आधुनिक श्रद्धांजलि है।
